Wednesday, 6 June 2018

एक्सीडेंट के बाद भी नहीं मानी हार, 6200 रु से खड़ा किया 62 Cr. का बिजनेस

नई दिल्ली. कहते हैं कि अगर हुनर के साथ मेहनत करने की लगन है तो आप अपनी किस्मत खुद बदल सकते हैं। बहुत से लोग जीवन में आई कठिनाइयों को अपनी किस्मत मान लेते हैं और उनकी पूरी जिंदगी परेशानी में ही बीत जाती है। हालांकि कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो अपनी लगन और मेहनत से अपनी कि‍स्मत खुद तय करते हैं। ऐसे ही कुछ लोगों में से एक हैं दिनेश गुप्‍ता, जो अपने जीवन में आई परेशानियों से घबराए नहीं और अपना एक मुकाम खड़ा किया। उन्होंने महज 6200 रुपए से बिजनेस अकाउंटिंग सॉफ्टवेयर ‘बिजी’ की शुरुआत, जिसका टर्नओवर आज 62 करोड़ रुपए है। आइए जानते हैं उनकी सफलता के बारे में..

एक्‍सीडेंट के चलते बैठ गए थे घर
बिजी इंफोटेक के फाउंडर डायरेक्‍टर दिनेश गुप्ता ने मनीभास्कर को बताया कि उन्होंने इंजीनियरिंग कॉलेज से बी-टेक की डिग्री हासिल की थी। बी-टेक करने के बाद उन्‍हें दिल्‍ली में एक आईटी कंपनी के रिसर्च एंड डेवलपमेंट विभाग में नौकरी मिल गयी। उन्‍होंने नौकरी में मन लगाकर काम तो किया, लेकिन उनका सपना कुछ और था। उनमें शुरू से ही जीवन में कुछ बड़ा करने की चाहत थी। नौकरी करने के दौरान उन्‍होंने कई बार कोशिश की कि वह कुछ समय निकालकर खुद के बिजनेस शुरू करने पर ध्यान दें। हालांकि नौकरी से उन्‍हें इतना समय ही नहीं मिल पाता था। उसी दौरान गुप्‍ता एक सड़क दुर्घटना में बुरी तरह जख्‍मी हो गए और 4-5 महीने के लिए वह बिस्‍तर पर आ गए। इससे उबरने के दौरान ही उन्होंने भविष्‍य की योजनाओं का खाका तैयार किया।

6,200 रुपए से की शुरुआत
इस दौरान गुप्‍ता अपना ज्‍यादातर समय कम्प्यूटर पर बिताते थे। कम्प्यूटर पर बढ़ती निर्भरता से उन्‍होंने यह तय किया कि वह इससे जुड़ा कुछ काम करेंगे। उनकी प्‍लानिंग कस्‍टमाइज्‍ड सॉफ्टवेयर बनाने की थी। उनकी इस योजना में सहयोगी बने उनके छोटे भाई। अपने भाई के साथ मिलकर उन्‍होंने एक रिश्‍तेदार के घर से बिजनेस की शुरुआत अपने की। इसके बाद उन्‍होंने दिल्ली के पीतमपुरा इलाके में करीब 2,000 रुपए मंथली किराए पर एक फ्लैट लिया। घर में रखा एक पुराना कम्प्यूटर और ऑफिस के लिए जरूरी कुछ सामान जैसे कुर्सी-टेबल आदि। गुप्‍ता के अनुसार इस सबकी कीमत तब कुछ 6,200 रूपए के आसपास थी।


पहली कोशिश गई बेकार
कई महीनों के प्रयासों के बाद उन्‍हें सफलता की पहली किरण तब नजर आई जब उन्‍हें मलेशिया की एक रेस्‍त्रां चेन चलाने वाली कंपनी से कस्‍टमाइज्‍ड सॉफ्टवेयर बनाने का ऑर्डर और एडवांस मिले। अलबत्‍ता एक साल बाद यानी जब सॉफ्टवेयर की डिलीवरी का समय आया तब कंपनी ने इसे लेने व बकाया पेमेंट देने से इनकार कर दिया। इस शुरुआती असफलता से गुप्‍ता निराश तो हुए, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।  इस दौरान यानी 1993 में उन्‍होंने बिजी अकाउंटिंग सॉफ्टवेयर बनाया। सॉफ्टवेयर तो बन गया था, लेकिन समस्‍या थी इसे बेचने की। मार्केट में तब पहले से ही एक अकाउंटिंग सॉफ्टवेयर प्रचलन में था और वह सॉफ्टवेयर विश्‍वसनीय तरीके से काम भी कर रहा था। ऐसे में एक नए अकाउंटिंग सॉफ्टवेयर को बेच पाना टेढ़ी खीर थी।

खोजा बिजनेस को इजी बनाने का फॉर्मूला
ए‍क बार फिर निराशा की स्थिति आने वाली थी कि गुप्‍ता और उनके भाई ने एक अंतिम प्रयास के रूप में उपभोक्‍तओं से मिलकर उनकी अकाउंटिंग जरूरतों को जाना। इस प्रयोग ने उन्‍हें उनकी मंजिल का रास्‍ता दिखा दिया। उपभोक्‍ताओं को एक ऐसे सॉफ्टवेयर की तलाश थी, जो अकाउंटिंग के साथ-साथ उनका बिजनेस मैनेज करने और सेल्‍स टैक्‍स रिपोर्ट व इनवॉइस आदि बनाने में भी उनकी मदद कर सके। फिर क्‍या था। उक्‍त फीचर्स के साथ उन्‍होंने ‘बिजी’ का नया वर्जन मार्केट में उतारा तो उपभोक्‍ताओं ने उसे हाथों-हाथ खरीद लिया। यह नया सॉफ्वेयर अकाउंट के साथ-साथ इनवेंटरी, इनवॉयस और सेल्‍स टैक्‍स रिपोर्ट भी जैनरेट करता था। देखते ही देखते 1997 में बिजी इन्‍फोटेक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के रूप में रजिस्‍टर्ड हुई और इसके उपभोक्‍ताओं की संख्‍या बढती गई।


20 देशों में हैंं कंपनी के ग्राहक
गुप्‍ता ने बताया कि आज कंपनी के लाखों ग्राहक हैं और लगभग 150 कर्मचारी कंपनी में कार्य कर रहे हैं। यही नहीं, भारत के अलावा दक्षिण-एशिया, अफ्रिका और मिडल ईस्‍ट के 20 से ज्‍यादा देशों में कंपनी के ग्राहक हैं। अकाउंटिंग जैसे जटिल विषय को आसान करना उनका मुख्य उद्देश्य है।

No comments:

Post a Comment