Thursday 18 May 2017

स्टार्टअप: लाखों की नौकरी छोड़ दी तरुण और गुरविंदर ने


तरुण शर्मा और गुरविंदर सिंह एक ही कंपनी में काम करते थे। दोनों की ही सोच थी कि कुछ ऐसा काम किया जाए जो लोगों की समस्या को हल करे और उनके मनमुताबिक काम हो।
तरुण के पिता पार्किंसन की बीमारी से जूझ रहे थे तो गुरविंदर के कुछ रिश्तेदार डायबिटीज से। तरुण को अपने पिता को पीजीआई में दिखाने के लिए आफिस से छुट्टी लेनी पड़ती थी। इसलिए उनके मन में सवाल उठा कि क्यों न ऐसा कोई सिस्टम हो कि उनके पिता या अन्य किसी को दिखाने के लिए अस्पताल का चक्कर ही लगाना न पड़े। 

अब उनके समस्या थी कि यदि सभी बीमारियों को लेकर कुछ काम किया जाएगा तो उसका सफल होना काफी मुश्किल होगा। ऐसे में उन्होंने एक बीमारी पर ही फोकस किया। उन्होंने जब सर्वे किया तो पता चला कि डायबिटीज का प्रीवलेंस काफी अधिक है। इसीलिए उन्होंने डायबिटीजी नाम का एक मोबाइल एप्लीकेशन लांच किया। जो घर बैठे मरीजों को ब्लड प्रेशर और वेट कंट्रोल करने में मदद करता है। 

वाट्सअप की तरह डायबिटीजी के कस्टमर भी चैट के माध्यम अपने डाक्टर और न्यूट्रीशियन से कभी भी संपर्क कर सकते हैं। हालांकि अभी ये उपलब्धता 24 घंटे के लिए है, लेकिन अब यह 24 घंटे के लिए होने जा रहा है। पूरे दिन मरीज ने क्या-क्या खाया कितनी एनर्जी बर्न की इसका रिमाइंडर पल-पल मिलता रहेगा। इससे मरीज ज्यादा सजग रहते हैं। इसके अलावा कई मेडिकल डिवाइस और पैकेज की सुविधा है, जो कहीं नहीं मिलती। 

कंपनी को शुरूआत हुए कुछ ही दिन हुए लेकिन उसके यूजर्स की संख्या काफी तेजी से बढ़ रही है। तीन महीने के भीतर 1300 से ज्यादा यूजर्स मिल गए हैं। आइडिए को देखते हुए फंडिंग भी मिल रही है। 

वेंचर्स कैपिटिलिस्ट की ओर से उन्हें फंडिंग मिली है। कई फ्रेंडली फ्रेंड भी कंपनी में इन्वेस्ट कर रहे हैं। जबरदस्त रिस्पांस को देखते हुए डायबिटीजी को अन्य शहरों में भी लांच करने की तैयारी चल रही है। कंपनी की प्लानिंग है कि इसे विदेशों में भी लांच किया जाए।

गुड़गांव के 16 वर्ष के अनुभव बने कंपनी के सीईओ

startup, sixteen years old anubhav become ceo his own company
जिस उम्र में बच्चे कैरियर बनाने के बारे में सोचना शुरू करते हैं, उस उम्र में अनुभव वाधवा ने अपना स्टार्टअप शुरू कर दिया। 16 वर्षीय अनुभव ने टायरलेसली नाम एक स्टार्टअप शुरू किया है।
अनुभव ने दिसंबर 2015 में इसकी नींव रखी है। हालांकि उन्होंने 2013 में भी एक स्टार्टअप शुरू किया था। उससे जो भी रुपये आए उसे अब टायरलेसली में लगा दिया।

अनुभव ने बताया कि जब वे स्कूल से वापस आ रहे थे तभी उन्हें सड़क पर पुराने टायरों को जलते देखा। इससे पर्यावरण बहुत प्रदूषित होता है। उन्होंने बताया कि वे पुराने टायरों को इकट्ठा करते हैं और फिर उसे रिसाइकिल प्लांट में भेजते हैं। 

टायरलेसली को अगर आप पुराने टायर देना चाहते हैं तो कोई भी इनकी वेबसाइट पर जाकर अपना मैसेज छोड़ सकता है। जिसके बाद आपकी बताई जगह से ये पुराने टायरों को उठाने का काम करते हैं। यह सेवा वो फिलहाल दिल्ली और एनसीआर में दे रहे हैं, जल्द ही अपनी से सेवा का विस्तार देश के 12 अन्य प्रमुख शहरों में करने वाले हैं।

अनुभव का कहना है कि वो जब लोगों से पुराने टायर लेते हैं तो उसके बदले कोई भुगतान तो नहीं करते लेकिन टायर लाने ले जाने की सुविधाएं मुफ्त में देते हैं। उन्होंने बताया कि साल 2013 में एजुकेशन एंड टेक्नोलाजी डेवलपमेंट में जो स्टार्टअप शुरू किया था, उसमें जो रुपया इकट्ठा हुआ था, उसकी राशि स्टार्टअप में लगाई है। 

कंपनी की आय के बारे में अनुभव कहते हैं कि वेबसाइट में आने वाले विज्ञापन उनकी आय का मुख्य स्रोत होंगे। टायरलेसली हवा को प्रदूषित किये बिना टायरों को डिसपोज कर उनसे तेल, ग्रीस और दूसरे उत्पाद बिना प्रदूषण किए निकालती है। अनुभव के इस काम में सबसे ज्यादा मदद उनके माता पिता करते हैं, जो नियमित तौर पर अपने काम को लेकर उनका मनोबल ऊंचा बनाए रखते हैं। 

अनुभव के मुताबिक उनकी कोशिश रहती है कि वह विभिन्न समुदायों की मदद से लोगों को टायर के जलने से होने वाले नुकसान के प्रति जागरूक करें। हाल ही में शुरू किए गए अपने इस वेंचर को लेकर अनुभव का कहना है कि वो फरवरी के अंत तक कम से कम एक हजार बेकार टायर इकट्ठा करना चाहते हैं और उनकी योजना अपने इस कारोबार को देशभर में फैलाने की है। वे दिन भर पढ़ाई करने के बाद ज्यादातर शाम के वक्त अपने इस वेंचर पर ध्यान देते हैं। इस तरह ना पढ़ाई छूटती है और ना ही उनके इस काम में असर पड़ता है।

स्टार्टअप से जुड़ी वह सारी जानकारी जो आपके काम की

important facts about startup
जब किसी कंपनी का प्रोडक्ट या सर्विस किसी व्यक्ति की समस्या को घर बैठे समाधान दे तो उसे स्टार्ट-अप कहते हैं। इसकी शुरुआत कोई एक व्यक्ति कर सकता या फिर अपने कई पाटर्नर के साथ स्टार्ट-अप को शुरू कर सकते हैं। नए आइडिया के साथ शुरू हुए स्टार्ट-अप अपने अनोखेपन की वजह से बाजार में बड़ी जल्दी जगह बना लेते हैं। कंपनी को चलाने के लिए संस्थापक अपनी पूंजी लगा सकता है या फिर बड़ी कंपनियां पूंजी लगा सकती है। हालांकि स्टार्टअप में जोखिम ज्यादा होता है, लेकिन यदि एक बार आइडिया काम कर जाए तो वह सफलता की नई कहानियां भी गढ़ता है।
देश में स्टार्टअप की स्थिति
देश में स्टार्टअप की संख्या हर साल बढ़ रही है. साल 2010 में 480 स्टार्टअप शुरू हुए थे। उसके बाद संख्या बढ़ती चली गई। साल 2011 में 525, जबकि 2012 में 590 स्टार्टअप शुरू हुए। 2013 में 680 और फिर 2014 में 805 स्टार्टअप शुरू हुए। 2015 में ये आंकड़ा एक हजार के पार हो गया। 

पिछले साल १२०० स्टार्टअप शुरू हुए हैं। एसबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में स्टार्टअप की दुनिया की शुरुआत करने वाले की औसत उम्र 28 साल है. दुनिया भर के निवेशकों ये बात सबसे ज्यादा आकर्षित कर रही है. एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में करीब 4200 स्टार्टअप हैं और सरकार नई पॉलिसी के जरिए पांच साल बाद यानी साल 2020 तक देश में 11 हजार से ज्यादा स्टार्टअप तैयार होने की उम्मीद कर रही है।

विश्व में तीसरे नंबर पर 
नैसकॉम की साल 2015 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत स्टार्टअप के मामले में अमेरिका और ब्रिटेन के बाद दुनिया में तीसरे नंबर पर पहुंच चुका है. स्टार्टअप की रफ्तार कुछ ऐसी है कि साल 2014 में 179 स्टार्टअप में 14500 करोड़ का निवेश हुआ जबकि 2015 में 400 स्टार्टअप में करीब 32 हजार करोड़ का निवेश हुआ है. यानी हर हफ्ते 625 करोड़ रुपये। 

ऐसे शुरू करे स्टार्टअप
स्टार्टअप शुरू करने से पहले सबसे पहले समस्या की पहचान करनी होगी। उसे समझना होगा। समस्या का क्या हल करने के लिए एक आइडिया लाना होगा। फिर सोचें कि जो साल्यूशन आप लोगों को देने जा रहे हैं, क्या सच में उसकी किसी को जरूरत है। क्या इस जरूरत को पूरा करने के लिए शुरू किए बिजनेस से आपको फायदा होगा। 

यदि आपके आइडिए पर पहले से ही कंपनी काम कर रही है तो वह उससे कितना अलग है। आइडिया को जमीन पर लाना प्रैक्टिकल तरीके से संभव है। उसके बाद जो आइडिया निकल कर आया है तो उसके लिए मार्केट में एक सर्वे करें। सर्वे में देखे कि जो आइडिया आप लेकर आ रहे हैं, वह वाकई इतना उपयोगी है या फिर नहीं। 

सर्वे के मुताबिक अपने आइडिया को थोड़ा बदलाव भी ला सकते हैं। इसके बारे में मार्केटिंग प्रोफेशनल से जुड़े लोगों से बातचीत कर सकते हैं।

कानूनी कवर देना जरूरी 
स्टार्ट-अप शुरू करने के बाद उसे कानूनी कवर देना भी बहुत जरूरी है। शुरुआती दौर में प्रोपराइटरशिप, पाटर्नरशिप और प्राइवेट लिमिटेड के हिसाब से इसे रजिस्टर्ड करवा सकते हैं। जब वह कंपनी सक्सेसफुल चलने लगे तो उसे मिनिस्ट्री आफ कापरेट अफेयर्स से रजिस्टर्ड करवाना होगा। 
कंपनी ला के मुताबिक किसी भी रजिस्टर्ड कंपनी के लिए दो पाटर्नर और दो शेयर होल्डर होना जरूरी है। अपने आइडिया को कापीराइट भी करवाएं। इसके लिए इंटरनेट का सहारा ले सकते हैं। 

फंड के लिए मशक्कत
अब आइडिया को कागज से जमीन से उतारने की बारी है। इसके लिए फंड की जरूरत पड़ती है। आप अपनी जमा पूंजी भी लगा सकते हैं। या फिर किसी मित्र से रुपये लेकर उसमें इन्वेस्ट करे। यदि यह सब नहीं हैं तो वेंचर कैपिटलिस्ट से संपर्क कर सकते हैं। उन्हें आइडिया बताइए। यदि आइडिया पसंद आया तो वेंचर कैपिटलिस्ट आपके आइडिया पर रुपये लगा सकते हैं। मेट्रो सिटी में कई इन्वेस्टर हैं, जो स्टार्टअप पर रुपये लगा रहे हैं। 

इस तरह इन्वेस्ट करते हैं वेंचर कैपिटलिस्ट
कई स्टार्टअप को फंडिंग करने वाले और ग्रे सेल टेक्नोलाजिस एक्सपोट्र्स के सीईओ व फाउंडर मुनीष जौहर बताते हैं कि किसी भी स्टार्टअप को फंडिग करने से पहले वे टीम को देखते हैं। टीम के सदस्यों की क्या खासियत हैï? उसके बाद आइडिया को। उनका कहना है कि यदि आइडिया है और टीम नहीं तो कंपनी का चलना मुश्किल होता है। 

इन्वेस्टर का ग्रुप बनाया 
मुनीष जौहर बताते हैं कि उन्होंने व उनके दोस्तों ने मिलकर चंडीगढ़ एंजेल नेटवर्क बनाया है। नेटवर्क स्टार्टअप को फंडिंग, बिजनेस प्लान, मेंटोरिंग, प्रोफेशनल नेटवर्क और इन्क्यूबेटर के बारे में सहयोग करती है। इस ग्रुप में २० से ज्यादा यंग इंटरप्यनोर व सक्सेसफुल कंपनियों के अनुभवी सीईओ हैं। 

मुनीष ने बताया कि इस नेटवर्क में स्टार्टअप शुरू करने वाले अप्लाई करते हैं। उन्हें शार्टलिस्ट किया जाता। फिर ग्रुप के सदस्य मीटिंग कर शार्टलिस्ट कंपनियों का इंटरव्यू करने के लिए बुलाते हैं। उसके बाद तय करते हैं कि किसके आइडिया में दम है और उसकी टीम आइडिया को एग्जीक्यूट करने में सक्षम है। 

को-फाउंडर का करें चुनाव 
किसी भी इंसान की जिंदगी में अच्छे पार्टनर का चुनाव बहुत मायने रखता है। चाहे बात लाइफ पार्टनर की हो, अच्छे दोस्त की या फिर बिजनेस पार्टनर की हो। एक अच्छे पार्टनर का चुनाव जिंदगी की हर राह को आसान बना देता है। 

अगर बात नई कंपनी की शुरुआत की हो तो ऐसे समय में एक अच्छा और वफादार बिजनेस पार्टनर यानी को-फाउंडर आपके लिए बहुत उपयोगी साबित हो सकता है। प्रसिद्ध उद्यमी पॉल ग्राहम किसी स्टार्टअप को अच्छे से चलाने के लिए एक अच्छे को-फाउंडर का चुनाव सबसे अहम मानते हैं। वे कहते हैं कि अगर आपके साथ एक अच्छा को-फाउंडर नहीं है तो सब काम छोड़ कर पहले एक अच्छे को-फाउंडर की तलाश में लग जाइए। क्योंकि उससे जरूरी कुछ नहीं है। एक ऐसा को-फाउंडर जो आपके आइडिया को पंख लगा दे और आपके बिजनेस को आगे बढ़ाने में सहायक सिद्ध हो। इसलिए सही पार्टनर के चयन में किसी प्रकार का भी समझौता न करें। 

एक स्टार्टअप में आपको एक अच्छे को-फाउंडर की जरूरत पड़ती है, क्योंकि उस समय आप सारे काम अकेले नहीं कर पाते। आपके पास समय की भी कमी होती है और साथ ही बहुत सारे ऐसे काम भी होते हैं जिनके लिए सलाह-मशविरा बहुत जरूरी है। उस दौरान आपको काम के विस्तार के लिए जानपहचान का दायरा बढ़ाना पड़ता है। कई अलग-अलग डिपार्टमेंट जैसे मार्किटिंग, सेल्स, डिज़ाइनिंग, कोडिंग आदि कामों से जुड़े लोगों से बात करनी होती है। तथा उन्हें अपने साथ काम करने के लिए तैयार करना होता है। 

अब सवाल यह उठता है कि एक अच्छे को-फाउंडर का चयन किस प्रकार किया जाए। क्योंकि यह जरूरी नहीं कि आपके मित्र आपके काम में दिलचस्पी लें और आपके साथ को-फाउंडर बनने में रुचि लें। ऐसे में अपने लिए एक अच्छे को-फाउंडर का चुनाव कैसे किया जाए? इस सवाल का जवाब तलाशना बहुत मुश्किल है क्योंकि आप किसी को भी अपने साथ काम करने के लिए मजबूर नहीं कर सकते।

को-फाउंडर में ये सोच जरूरी
1.उसका नज़रिया व चीज़ों को समझने की समझ आपसे मिलती हो तभी वह दिलचस्पी के साथ उस समस्या को समझेगा और उसे दूर करने के लिए साथ मिलकर प्रयास करेगा।
2. आपका और आपके को-फाउंडर का आर्थिक स्तर और मानसिक स्तर का मेल होना भी बहुत जरूरी है। इससे इंसान की सोच व व्यवहार एक समान रहता है।
3. आपके को-फाउंडर की समझ ऐसी होनी चाहिए कि वह आपके लक्ष्य को भी गहराई से समझता हो और आपके साथ मिलकर उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए दिल से प्रयास करे।
4. कोई जरूरी नहीं कि आपका को-फाउंडर ऑल राउंडर हो लेकिन हां उसके अंदर सीखने की लगन होनी चाहिए ताकि जरूरत पडऩे पर कोई नई चीज़ सीखनी हो तो वह दिलचस्पी दिखाए।

ये बिल्कुल न करें
देखा गया गया है कई बार लोग फेस बुक पर अपना को-फाउंडर तलाशने लगते हैं। ऐसे में कई नॉन सीरियस लोग भी वहां अपने कंमेंट लिख देते हैं। जो कि ठीक नहीं, जब आप ही अपने काम को लेकर गंभीर नहीं होंगे तो लोग भी आपके काम को गंभीरता से नहीं लेंगे। 

ऐसे में जरूरी है कि आप दूसरों के सामने खुद को गंभीरता से पेश करें। आप उन्हें बताएं कि इस काम से पहले आप क्या करते थे, आपने क्यों नए काम के विषय में सोचा और अब इस काम के माध्यम से आप अपना कौन सा लक्ष्य पूरा करना चाहते हैं। अगर आप इस प्रकार खुद को प्रस्तुत करेंगे तो लोग भी आपको गंभीरता से लेंगे।

फैमिली बिजनेस छोड़, ऑनलाइन किराना स्टोर खोल दिया

different from family business, open online retail shop
बिजनेसमैन फैमिली की तमन्ना होती है कि उनका बेटा बड़ा होकर जल्द से जल्द उनके कारोबार को संभाल ले, लेकिन कई लोग ऐसे होते हैं जो अनुकूल परिस्थितियां होने के बावजूद अपना पारंपरिक व्यवसाय संभालने के बजाए कुछ अलग तस्वीर बनाने की कोशिश करते हैं।
ऐसे लोगों में चंडीगढ़ के सिंद्धांत दास शामिल हैं। 23 वर्षीय सिद्धांत ने न सिर्फ अपने आइडिया को ई-कामर्स के बिजनेस में तब्दील किया बल्कि लोगों को रोजगार भी दिया है। उन्होंने soulbowl.in के नाम से चंडीगढ़ का पहला आनलाइन किराना स्टोर खोला है, जो खाद्य पदार्थों के आठ हजार ब्रांड को घर-घर बेचते हैं।

चंडीगढ़ में यह सामान वह ई-रिक्शा के माध्यम से भिजवाते हैं। डेढ़ साल के भीतर सोल बाउल कंपनी पूरे ट्राइसिटी की सबसे बड़ी ई-कामर्स कंपनी बन गई है।

शुरुआत में आई थी मुश्किले, संघर्ष अब भी जारी
आर्ट्स बैकग्राउंड से पढ़ाई करने वाले सिद्धांत बताते हैं कि उनके परिवार का पेट्रोल पंप का है। घर वालों की इच्छा भी थी कि उसी से जुड़ जाऊं। लेकिन मैं कुछ अलग करना चाहता था। ई-कामर्स के बिजनेस की शुरुआत काफी धीमी थी। खरीददार धीरे-धीरे बढ़ रहे थे, लेकिन हिम्मत नहीं हारी।

वेबसाइट का न तो कभी कोई प्रचार किया और कभी विज्ञापन छपवाया। सिर्फ वेबसाइट के जरिए लोगों तक पहुंच बनी। हर महीने 50 हजार रुपये का आनलाइन किराने का सामान बेच रहे हैं। कोई भी अतिरिक्त शुल्क नहीं लिया जाता, बल्कि एमआरपी के आधार पर चार्ज लिया जाता है।

300 रुपये से कम सामान खरीदने में चंडीगढ़ में 50 रुपये लेते हैं, जबकि ट्राइसिटी के लिए 100 रुपये। 300 रुपये से ज्यादा सामान खरीदने में कोई भी डिलीवरी चार्ज नहीं लेते।

यहां तक तीन हजार रुपये तक का सामान खरीदने में पांच प्रतिशत डिस्काउंट देते हैं। फोन आने के दो घंटे के भीतर सामान पहुंचाना कंपनी की जिम्मेदारी है। सामान की डिलीवरी दस बजे से लेकर 12 बजे, 12-2, 2-4, 4-6 और 6 बजे से लेकर आठ बजे तक की जाती है।

आनलाइन किराना स्टोर शुरू करने के पीछे यह थी सोच

सिद्धांत बताते हैं कि चंडीगढ़ में ट्रैफिक की समस्या बढ़ती जा रही है। हर जगह जाम की स्थिति बन रही है। खासकर मार्केट में। दूसरी बात समय की काफी कमी है। यदि चंडीगढ़ का कोई व्यक्ति सामान खरीदने मार्केट जाता है तो उसके कम से डेढ़ से दो घंटे का वक्त लगता है। समय और जाम से उलझने से बचने के लिए यह सोच जन्मी और ई-कंपनी बना डाली। एक यह भी सोच थी कि  अपने शहर में ही रहकर कोई काम किया जाए। अब तक उनके पास 500 रजिस्टर्ड ग्राहक बन चुके हैं। सिद्धांत बताते हैं कि वे डिस्काउंट के आधार पर अपने ग्राहक नहीं बल्कि सर्विस के आधार पर बनाना चाहते हैं।

कारोबार शुरू करने के सिद्धांत के पांच टिप्स

1.सबसे पहले अपने समाज की समस्या को पहचाने।
2.फिर उस समस्या का सालिड समाधान होना चाहिए, जो लोगों को घर बैठे ही मिल जाए।
3.अपने कस्टमर को भगवान समझे और समय-समय पर नई सुविधाएं भी देते रहे
4.स्टार्टअप शुरू करने के साथ-साथ आपका बैकअप मजबूत होना चाहिए। मसलन डिग्री हो या फिर नौकरी।
5.स्टार्ट अप फेल होने के बाद निराश न हो। कई ऐसे हैं जो पांच बार फेल होने के बाद आज सफलता के शिखर पर हैं।