जब किसी कंपनी का प्रोडक्ट या सर्विस किसी व्यक्ति की समस्या को घर बैठे समाधान दे तो उसे स्टार्ट-अप कहते हैं। इसकी शुरुआत कोई एक व्यक्ति कर सकता या फिर अपने कई पाटर्नर के साथ स्टार्ट-अप को शुरू कर सकते हैं। नए आइडिया के साथ शुरू हुए स्टार्ट-अप अपने अनोखेपन की वजह से बाजार में बड़ी जल्दी जगह बना लेते हैं। कंपनी को चलाने के लिए संस्थापक अपनी पूंजी लगा सकता है या फिर बड़ी कंपनियां पूंजी लगा सकती है। हालांकि स्टार्टअप में जोखिम ज्यादा होता है, लेकिन यदि एक बार आइडिया काम कर जाए तो वह सफलता की नई कहानियां भी गढ़ता है।
देश में स्टार्टअप की स्थिति
देश में स्टार्टअप की संख्या हर साल बढ़ रही है. साल 2010 में 480 स्टार्टअप शुरू हुए थे। उसके बाद संख्या बढ़ती चली गई। साल 2011 में 525, जबकि 2012 में 590 स्टार्टअप शुरू हुए। 2013 में 680 और फिर 2014 में 805 स्टार्टअप शुरू हुए। 2015 में ये आंकड़ा एक हजार के पार हो गया।
पिछले साल १२०० स्टार्टअप शुरू हुए हैं। एसबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में स्टार्टअप की दुनिया की शुरुआत करने वाले की औसत उम्र 28 साल है. दुनिया भर के निवेशकों ये बात सबसे ज्यादा आकर्षित कर रही है. एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में करीब 4200 स्टार्टअप हैं और सरकार नई पॉलिसी के जरिए पांच साल बाद यानी साल 2020 तक देश में 11 हजार से ज्यादा स्टार्टअप तैयार होने की उम्मीद कर रही है।
विश्व में तीसरे नंबर पर
नैसकॉम की साल 2015 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत स्टार्टअप के मामले में अमेरिका और ब्रिटेन के बाद दुनिया में तीसरे नंबर पर पहुंच चुका है. स्टार्टअप की रफ्तार कुछ ऐसी है कि साल 2014 में 179 स्टार्टअप में 14500 करोड़ का निवेश हुआ जबकि 2015 में 400 स्टार्टअप में करीब 32 हजार करोड़ का निवेश हुआ है. यानी हर हफ्ते 625 करोड़ रुपये।
ऐसे शुरू करे स्टार्टअप
स्टार्टअप शुरू करने से पहले सबसे पहले समस्या की पहचान करनी होगी। उसे समझना होगा। समस्या का क्या हल करने के लिए एक आइडिया लाना होगा। फिर सोचें कि जो साल्यूशन आप लोगों को देने जा रहे हैं, क्या सच में उसकी किसी को जरूरत है। क्या इस जरूरत को पूरा करने के लिए शुरू किए बिजनेस से आपको फायदा होगा।
यदि आपके आइडिए पर पहले से ही कंपनी काम कर रही है तो वह उससे कितना अलग है। आइडिया को जमीन पर लाना प्रैक्टिकल तरीके से संभव है। उसके बाद जो आइडिया निकल कर आया है तो उसके लिए मार्केट में एक सर्वे करें। सर्वे में देखे कि जो आइडिया आप लेकर आ रहे हैं, वह वाकई इतना उपयोगी है या फिर नहीं।
सर्वे के मुताबिक अपने आइडिया को थोड़ा बदलाव भी ला सकते हैं। इसके बारे में मार्केटिंग प्रोफेशनल से जुड़े लोगों से बातचीत कर सकते हैं।
कानूनी कवर देना जरूरी
स्टार्ट-अप शुरू करने के बाद उसे कानूनी कवर देना भी बहुत जरूरी है। शुरुआती दौर में प्रोपराइटरशिप, पाटर्नरशिप और प्राइवेट लिमिटेड के हिसाब से इसे रजिस्टर्ड करवा सकते हैं। जब वह कंपनी सक्सेसफुल चलने लगे तो उसे मिनिस्ट्री आफ कापरेट अफेयर्स से रजिस्टर्ड करवाना होगा।
कंपनी ला के मुताबिक किसी भी रजिस्टर्ड कंपनी के लिए दो पाटर्नर और दो शेयर होल्डर होना जरूरी है। अपने आइडिया को कापीराइट भी करवाएं। इसके लिए इंटरनेट का सहारा ले सकते हैं।
फंड के लिए मशक्कत
अब आइडिया को कागज से जमीन से उतारने की बारी है। इसके लिए फंड की जरूरत पड़ती है। आप अपनी जमा पूंजी भी लगा सकते हैं। या फिर किसी मित्र से रुपये लेकर उसमें इन्वेस्ट करे। यदि यह सब नहीं हैं तो वेंचर कैपिटलिस्ट से संपर्क कर सकते हैं। उन्हें आइडिया बताइए। यदि आइडिया पसंद आया तो वेंचर कैपिटलिस्ट आपके आइडिया पर रुपये लगा सकते हैं। मेट्रो सिटी में कई इन्वेस्टर हैं, जो स्टार्टअप पर रुपये लगा रहे हैं।
इस तरह इन्वेस्ट करते हैं वेंचर कैपिटलिस्ट
कई स्टार्टअप को फंडिंग करने वाले और ग्रे सेल टेक्नोलाजिस एक्सपोट्र्स के सीईओ व फाउंडर मुनीष जौहर बताते हैं कि किसी भी स्टार्टअप को फंडिग करने से पहले वे टीम को देखते हैं। टीम के सदस्यों की क्या खासियत हैï? उसके बाद आइडिया को। उनका कहना है कि यदि आइडिया है और टीम नहीं तो कंपनी का चलना मुश्किल होता है।
इन्वेस्टर का ग्रुप बनाया
मुनीष जौहर बताते हैं कि उन्होंने व उनके दोस्तों ने मिलकर चंडीगढ़ एंजेल नेटवर्क बनाया है। नेटवर्क स्टार्टअप को फंडिंग, बिजनेस प्लान, मेंटोरिंग, प्रोफेशनल नेटवर्क और इन्क्यूबेटर के बारे में सहयोग करती है। इस ग्रुप में २० से ज्यादा यंग इंटरप्यनोर व सक्सेसफुल कंपनियों के अनुभवी सीईओ हैं।
मुनीष ने बताया कि इस नेटवर्क में स्टार्टअप शुरू करने वाले अप्लाई करते हैं। उन्हें शार्टलिस्ट किया जाता। फिर ग्रुप के सदस्य मीटिंग कर शार्टलिस्ट कंपनियों का इंटरव्यू करने के लिए बुलाते हैं। उसके बाद तय करते हैं कि किसके आइडिया में दम है और उसकी टीम आइडिया को एग्जीक्यूट करने में सक्षम है।
को-फाउंडर का करें चुनाव
किसी भी इंसान की जिंदगी में अच्छे पार्टनर का चुनाव बहुत मायने रखता है। चाहे बात लाइफ पार्टनर की हो, अच्छे दोस्त की या फिर बिजनेस पार्टनर की हो। एक अच्छे पार्टनर का चुनाव जिंदगी की हर राह को आसान बना देता है।
अगर बात नई कंपनी की शुरुआत की हो तो ऐसे समय में एक अच्छा और वफादार बिजनेस पार्टनर यानी को-फाउंडर आपके लिए बहुत उपयोगी साबित हो सकता है। प्रसिद्ध उद्यमी पॉल ग्राहम किसी स्टार्टअप को अच्छे से चलाने के लिए एक अच्छे को-फाउंडर का चुनाव सबसे अहम मानते हैं। वे कहते हैं कि अगर आपके साथ एक अच्छा को-फाउंडर नहीं है तो सब काम छोड़ कर पहले एक अच्छे को-फाउंडर की तलाश में लग जाइए। क्योंकि उससे जरूरी कुछ नहीं है। एक ऐसा को-फाउंडर जो आपके आइडिया को पंख लगा दे और आपके बिजनेस को आगे बढ़ाने में सहायक सिद्ध हो। इसलिए सही पार्टनर के चयन में किसी प्रकार का भी समझौता न करें।
एक स्टार्टअप में आपको एक अच्छे को-फाउंडर की जरूरत पड़ती है, क्योंकि उस समय आप सारे काम अकेले नहीं कर पाते। आपके पास समय की भी कमी होती है और साथ ही बहुत सारे ऐसे काम भी होते हैं जिनके लिए सलाह-मशविरा बहुत जरूरी है। उस दौरान आपको काम के विस्तार के लिए जानपहचान का दायरा बढ़ाना पड़ता है। कई अलग-अलग डिपार्टमेंट जैसे मार्किटिंग, सेल्स, डिज़ाइनिंग, कोडिंग आदि कामों से जुड़े लोगों से बात करनी होती है। तथा उन्हें अपने साथ काम करने के लिए तैयार करना होता है।
अब सवाल यह उठता है कि एक अच्छे को-फाउंडर का चयन किस प्रकार किया जाए। क्योंकि यह जरूरी नहीं कि आपके मित्र आपके काम में दिलचस्पी लें और आपके साथ को-फाउंडर बनने में रुचि लें। ऐसे में अपने लिए एक अच्छे को-फाउंडर का चुनाव कैसे किया जाए? इस सवाल का जवाब तलाशना बहुत मुश्किल है क्योंकि आप किसी को भी अपने साथ काम करने के लिए मजबूर नहीं कर सकते।
को-फाउंडर में ये सोच जरूरी
1.उसका नज़रिया व चीज़ों को समझने की समझ आपसे मिलती हो तभी वह दिलचस्पी के साथ उस समस्या को समझेगा और उसे दूर करने के लिए साथ मिलकर प्रयास करेगा।
2. आपका और आपके को-फाउंडर का आर्थिक स्तर और मानसिक स्तर का मेल होना भी बहुत जरूरी है। इससे इंसान की सोच व व्यवहार एक समान रहता है।
3. आपके को-फाउंडर की समझ ऐसी होनी चाहिए कि वह आपके लक्ष्य को भी गहराई से समझता हो और आपके साथ मिलकर उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए दिल से प्रयास करे।
4. कोई जरूरी नहीं कि आपका को-फाउंडर ऑल राउंडर हो लेकिन हां उसके अंदर सीखने की लगन होनी चाहिए ताकि जरूरत पडऩे पर कोई नई चीज़ सीखनी हो तो वह दिलचस्पी दिखाए।
ये बिल्कुल न करें
देखा गया गया है कई बार लोग फेस बुक पर अपना को-फाउंडर तलाशने लगते हैं। ऐसे में कई नॉन सीरियस लोग भी वहां अपने कंमेंट लिख देते हैं। जो कि ठीक नहीं, जब आप ही अपने काम को लेकर गंभीर नहीं होंगे तो लोग भी आपके काम को गंभीरता से नहीं लेंगे।
ऐसे में जरूरी है कि आप दूसरों के सामने खुद को गंभीरता से पेश करें। आप उन्हें बताएं कि इस काम से पहले आप क्या करते थे, आपने क्यों नए काम के विषय में सोचा और अब इस काम के माध्यम से आप अपना कौन सा लक्ष्य पूरा करना चाहते हैं। अगर आप इस प्रकार खुद को प्रस्तुत करेंगे तो लोग भी आपको गंभीरता से लेंगे।
देश में स्टार्टअप की संख्या हर साल बढ़ रही है. साल 2010 में 480 स्टार्टअप शुरू हुए थे। उसके बाद संख्या बढ़ती चली गई। साल 2011 में 525, जबकि 2012 में 590 स्टार्टअप शुरू हुए। 2013 में 680 और फिर 2014 में 805 स्टार्टअप शुरू हुए। 2015 में ये आंकड़ा एक हजार के पार हो गया।
पिछले साल १२०० स्टार्टअप शुरू हुए हैं। एसबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में स्टार्टअप की दुनिया की शुरुआत करने वाले की औसत उम्र 28 साल है. दुनिया भर के निवेशकों ये बात सबसे ज्यादा आकर्षित कर रही है. एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में करीब 4200 स्टार्टअप हैं और सरकार नई पॉलिसी के जरिए पांच साल बाद यानी साल 2020 तक देश में 11 हजार से ज्यादा स्टार्टअप तैयार होने की उम्मीद कर रही है।
विश्व में तीसरे नंबर पर
नैसकॉम की साल 2015 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत स्टार्टअप के मामले में अमेरिका और ब्रिटेन के बाद दुनिया में तीसरे नंबर पर पहुंच चुका है. स्टार्टअप की रफ्तार कुछ ऐसी है कि साल 2014 में 179 स्टार्टअप में 14500 करोड़ का निवेश हुआ जबकि 2015 में 400 स्टार्टअप में करीब 32 हजार करोड़ का निवेश हुआ है. यानी हर हफ्ते 625 करोड़ रुपये।
ऐसे शुरू करे स्टार्टअप
स्टार्टअप शुरू करने से पहले सबसे पहले समस्या की पहचान करनी होगी। उसे समझना होगा। समस्या का क्या हल करने के लिए एक आइडिया लाना होगा। फिर सोचें कि जो साल्यूशन आप लोगों को देने जा रहे हैं, क्या सच में उसकी किसी को जरूरत है। क्या इस जरूरत को पूरा करने के लिए शुरू किए बिजनेस से आपको फायदा होगा।
यदि आपके आइडिए पर पहले से ही कंपनी काम कर रही है तो वह उससे कितना अलग है। आइडिया को जमीन पर लाना प्रैक्टिकल तरीके से संभव है। उसके बाद जो आइडिया निकल कर आया है तो उसके लिए मार्केट में एक सर्वे करें। सर्वे में देखे कि जो आइडिया आप लेकर आ रहे हैं, वह वाकई इतना उपयोगी है या फिर नहीं।
सर्वे के मुताबिक अपने आइडिया को थोड़ा बदलाव भी ला सकते हैं। इसके बारे में मार्केटिंग प्रोफेशनल से जुड़े लोगों से बातचीत कर सकते हैं।
कानूनी कवर देना जरूरी
स्टार्ट-अप शुरू करने के बाद उसे कानूनी कवर देना भी बहुत जरूरी है। शुरुआती दौर में प्रोपराइटरशिप, पाटर्नरशिप और प्राइवेट लिमिटेड के हिसाब से इसे रजिस्टर्ड करवा सकते हैं। जब वह कंपनी सक्सेसफुल चलने लगे तो उसे मिनिस्ट्री आफ कापरेट अफेयर्स से रजिस्टर्ड करवाना होगा।
कंपनी ला के मुताबिक किसी भी रजिस्टर्ड कंपनी के लिए दो पाटर्नर और दो शेयर होल्डर होना जरूरी है। अपने आइडिया को कापीराइट भी करवाएं। इसके लिए इंटरनेट का सहारा ले सकते हैं।
फंड के लिए मशक्कत
अब आइडिया को कागज से जमीन से उतारने की बारी है। इसके लिए फंड की जरूरत पड़ती है। आप अपनी जमा पूंजी भी लगा सकते हैं। या फिर किसी मित्र से रुपये लेकर उसमें इन्वेस्ट करे। यदि यह सब नहीं हैं तो वेंचर कैपिटलिस्ट से संपर्क कर सकते हैं। उन्हें आइडिया बताइए। यदि आइडिया पसंद आया तो वेंचर कैपिटलिस्ट आपके आइडिया पर रुपये लगा सकते हैं। मेट्रो सिटी में कई इन्वेस्टर हैं, जो स्टार्टअप पर रुपये लगा रहे हैं।
इस तरह इन्वेस्ट करते हैं वेंचर कैपिटलिस्ट
कई स्टार्टअप को फंडिंग करने वाले और ग्रे सेल टेक्नोलाजिस एक्सपोट्र्स के सीईओ व फाउंडर मुनीष जौहर बताते हैं कि किसी भी स्टार्टअप को फंडिग करने से पहले वे टीम को देखते हैं। टीम के सदस्यों की क्या खासियत हैï? उसके बाद आइडिया को। उनका कहना है कि यदि आइडिया है और टीम नहीं तो कंपनी का चलना मुश्किल होता है।
इन्वेस्टर का ग्रुप बनाया
मुनीष जौहर बताते हैं कि उन्होंने व उनके दोस्तों ने मिलकर चंडीगढ़ एंजेल नेटवर्क बनाया है। नेटवर्क स्टार्टअप को फंडिंग, बिजनेस प्लान, मेंटोरिंग, प्रोफेशनल नेटवर्क और इन्क्यूबेटर के बारे में सहयोग करती है। इस ग्रुप में २० से ज्यादा यंग इंटरप्यनोर व सक्सेसफुल कंपनियों के अनुभवी सीईओ हैं।
मुनीष ने बताया कि इस नेटवर्क में स्टार्टअप शुरू करने वाले अप्लाई करते हैं। उन्हें शार्टलिस्ट किया जाता। फिर ग्रुप के सदस्य मीटिंग कर शार्टलिस्ट कंपनियों का इंटरव्यू करने के लिए बुलाते हैं। उसके बाद तय करते हैं कि किसके आइडिया में दम है और उसकी टीम आइडिया को एग्जीक्यूट करने में सक्षम है।
को-फाउंडर का करें चुनाव
किसी भी इंसान की जिंदगी में अच्छे पार्टनर का चुनाव बहुत मायने रखता है। चाहे बात लाइफ पार्टनर की हो, अच्छे दोस्त की या फिर बिजनेस पार्टनर की हो। एक अच्छे पार्टनर का चुनाव जिंदगी की हर राह को आसान बना देता है।
अगर बात नई कंपनी की शुरुआत की हो तो ऐसे समय में एक अच्छा और वफादार बिजनेस पार्टनर यानी को-फाउंडर आपके लिए बहुत उपयोगी साबित हो सकता है। प्रसिद्ध उद्यमी पॉल ग्राहम किसी स्टार्टअप को अच्छे से चलाने के लिए एक अच्छे को-फाउंडर का चुनाव सबसे अहम मानते हैं। वे कहते हैं कि अगर आपके साथ एक अच्छा को-फाउंडर नहीं है तो सब काम छोड़ कर पहले एक अच्छे को-फाउंडर की तलाश में लग जाइए। क्योंकि उससे जरूरी कुछ नहीं है। एक ऐसा को-फाउंडर जो आपके आइडिया को पंख लगा दे और आपके बिजनेस को आगे बढ़ाने में सहायक सिद्ध हो। इसलिए सही पार्टनर के चयन में किसी प्रकार का भी समझौता न करें।
एक स्टार्टअप में आपको एक अच्छे को-फाउंडर की जरूरत पड़ती है, क्योंकि उस समय आप सारे काम अकेले नहीं कर पाते। आपके पास समय की भी कमी होती है और साथ ही बहुत सारे ऐसे काम भी होते हैं जिनके लिए सलाह-मशविरा बहुत जरूरी है। उस दौरान आपको काम के विस्तार के लिए जानपहचान का दायरा बढ़ाना पड़ता है। कई अलग-अलग डिपार्टमेंट जैसे मार्किटिंग, सेल्स, डिज़ाइनिंग, कोडिंग आदि कामों से जुड़े लोगों से बात करनी होती है। तथा उन्हें अपने साथ काम करने के लिए तैयार करना होता है।
अब सवाल यह उठता है कि एक अच्छे को-फाउंडर का चयन किस प्रकार किया जाए। क्योंकि यह जरूरी नहीं कि आपके मित्र आपके काम में दिलचस्पी लें और आपके साथ को-फाउंडर बनने में रुचि लें। ऐसे में अपने लिए एक अच्छे को-फाउंडर का चुनाव कैसे किया जाए? इस सवाल का जवाब तलाशना बहुत मुश्किल है क्योंकि आप किसी को भी अपने साथ काम करने के लिए मजबूर नहीं कर सकते।
को-फाउंडर में ये सोच जरूरी
1.उसका नज़रिया व चीज़ों को समझने की समझ आपसे मिलती हो तभी वह दिलचस्पी के साथ उस समस्या को समझेगा और उसे दूर करने के लिए साथ मिलकर प्रयास करेगा।
2. आपका और आपके को-फाउंडर का आर्थिक स्तर और मानसिक स्तर का मेल होना भी बहुत जरूरी है। इससे इंसान की सोच व व्यवहार एक समान रहता है।
3. आपके को-फाउंडर की समझ ऐसी होनी चाहिए कि वह आपके लक्ष्य को भी गहराई से समझता हो और आपके साथ मिलकर उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए दिल से प्रयास करे।
4. कोई जरूरी नहीं कि आपका को-फाउंडर ऑल राउंडर हो लेकिन हां उसके अंदर सीखने की लगन होनी चाहिए ताकि जरूरत पडऩे पर कोई नई चीज़ सीखनी हो तो वह दिलचस्पी दिखाए।
ये बिल्कुल न करें
देखा गया गया है कई बार लोग फेस बुक पर अपना को-फाउंडर तलाशने लगते हैं। ऐसे में कई नॉन सीरियस लोग भी वहां अपने कंमेंट लिख देते हैं। जो कि ठीक नहीं, जब आप ही अपने काम को लेकर गंभीर नहीं होंगे तो लोग भी आपके काम को गंभीरता से नहीं लेंगे।
ऐसे में जरूरी है कि आप दूसरों के सामने खुद को गंभीरता से पेश करें। आप उन्हें बताएं कि इस काम से पहले आप क्या करते थे, आपने क्यों नए काम के विषय में सोचा और अब इस काम के माध्यम से आप अपना कौन सा लक्ष्य पूरा करना चाहते हैं। अगर आप इस प्रकार खुद को प्रस्तुत करेंगे तो लोग भी आपको गंभीरता से लेंगे।
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